दर्द ऐसा भी क्या
कि कहते बने न सहते बने
घर ऐसा भी क्या
कि रहते बने न ढहते बने
दरिया-दरिया, पानी-पानी
कस्ती-कस्ती मौज रवानी
मगर ऐसा भी क्या
कि रूकते बने न बहते बने
मंजिल-मंजिल, रस्ता-रस्ता
बस्ती-बस्ती पैर दस्ता
पर ऐसा भी क्या
कि उड़ते बने न मुड़ते बने
कौन देगा ख़बर हवा बीमार है
बिगड़ती तासीर की दवा बीमार है
*************
कि कहते बने न सहते बने
घर ऐसा भी क्या
कि रहते बने न ढहते बने
दरिया-दरिया, पानी-पानी
कस्ती-कस्ती मौज रवानी
मगर ऐसा भी क्या
कि रूकते बने न बहते बने
मंजिल-मंजिल, रस्ता-रस्ता
बस्ती-बस्ती पैर दस्ता
पर ऐसा भी क्या
कि उड़ते बने न मुड़ते बने
कौन देगा ख़बर हवा बीमार है
बिगड़ती तासीर की दवा बीमार है
*************
5 टिप्पणियां:
मगर आपकी रचना की तासीर बहुत गहरी है ... बहुत खूब ...
बाल दिवस की शुभकामनायें.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत ही बढ़िया !!!!! आपके कलम को सलाम करता हूँ .
http://dreamsruins.blogspot.com/
बहुत खूबसूरत रचना ....
यह तो नव गीत जैसा कुछ लग रहा है ।
एक टिप्पणी भेजें