ग़ज़ल
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं,
होते हैं और नहीं भी होते हैं।
सब ढोंग-धतूरे अपने ही मूल्क में नहीं,
अच्छे-बुरे लोग हर कहीं होते हैं।
बेकार पूजते हैं हम अपनी इच्छाओं को,
सब कुछ पा लेने वाले भी ख़ुश नहीं होते हैं।
हरे-भरे सपने से जुदा है रोज़गार,
नहरें खोदने वाले सभी प्यासे नहीं होते हैं।
जिसे जो समझना था समझा है ख़ुद को,
सारे ग़लत लोग कभी सही भी होते हैं।
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