इट वाज़ ए रिव्वोल्यूशनरी जजमेंट..............................................
कुजूर जिसका जीवन लखनपुर के गोयल सेठ के पास गिरवी है। उसे दो जुन का दाल-चावल मयस्सर है किंतु उसके संगी-साथी, उसके अपने लोग भूखे-लॉंगे हैं। उसे उनकी भूख उद्वेलित करती है। उनकी भूख और पीड़ा का उसे अपने साथियों के साथ अनाज गोदाम लूटने को विवश करता है किंतु लूट के बाद भागते हुए सभी पकड़ा जाते हैं। सारे ज़माखोर सतर्क हो जाते हैं, तथाकथित सभ्य समाज की ऑंखों से भी यह घटना गुज़रती है किंतु कुजूर और उसके साथियों का इस आरोप को मान लेना, क़ुबूल कर लेना न्यायाधीश को एक अभूतपूर्व फ़ैसले की ओर ले जाता है। अलकुजूर और उसके साथियों को सिर्फ़ एक दिन के सादे कारावास की सज़ा दी जाती है और गोयल सेठ व अन्य जमाखोरों को फटकारकर उनके ख़िलाफ़ जमाखोरी के ज़ुर्म में क़ानूनी कार्रवाई हेतु ज़िला प्रशासन को हिदायत दी जाती है। जेम्स इस निर्णय से गहरे प्रभावित होता है, तभी तो वह सोचता है,.......'इट इज़ ए रिवोल्यूशनरी जजमेंट', इस फ़ैसले के ज़रिये जेम्स आत्ममंथन करता है कि जिस ईसाई मिशनरीज़ ने हमें उत्पीड़न, असंवेदन और शोषण से उबरने में समर्थ किया है वही यदि हमें अपनी विचारधारा और जीवनशैली थोपकर हमारा शोषण करें तो यह स्वीकार्य नहीं है....... ''क्योंकि जो हमें एक तरह के शोषण से मुक्त कराता है। जब वह ख़ुद हमारा शोषण करने लगता है तो उसके अंदर का 'सेंस ऑफ़ गिल्ट' भी ख़त्म हो जाता है। यह बात और ख़तरनाक होती है,'' ( पृ0 109 ) जेम्स के चरित्र का रूपांतरण यहॉं स्पष्ट देखा जा सकता है। निस्संदेह किसी का पोसना इसलिए ज़रूरी नहीं कि पोषित ही बाद में पोषण का काम करे।
एक ख़ूबसुरत मछली.......राग-रव........खाखा पक्षी की चहक.................
मनुष्य की रागात्मकता मिट नहीं सकती। आस्था, धर्म, कर्मकांड, साधना, विश्वास, विचारधारा, रीति-रिवाज, धर्म-संस्कृति या जीवनशैली का कोई भी आवरण उसे ढँक तो सकता है किंतु नष्ट नहीं कर सकता। जेम्स और सोज़ेलिन के मध्य उपस्थित राग में एक दैवीय आकर्षण है जो उन्हें परस्पर खींचता-बॉंधता और मुक्त करता है। चेन्द्रा घाट के पास घास पर लेटा जेम्स और उसके सामने बैठी सोज़ेलिन, उनके मध्य का मौन और फिर चेंद्रा में प्रवाहित जल के स्पर्श से मुखर होता मौन उन्हें पूर्णत: अनुरक्त कर देता है-उन्हें एक कर देता है। दृष्टव्य है जेम्स का आभास......''उसे लगा कि गाजर घास उत्तम देश की बढ़िया फ़सल है। उसके आसपास बड़े-बड़े पत्थर थे जो सुंदर ग़लीचों की तरह लग रहे थे। मिट्टी की चादरें थीं, कोसे पानी का बहता झरना था, दूर-दूर तक नरम घास थी , गाजर घास के बीच लाल गाजर की कल्पना थी। सब कुछ था। वह था, सोज़ेलिन थी। पर कुछ नहीं था, क्योंकि बहुत कुछ ऐसा था जो उनके लिए वर्जित था। क्यों वर्जित था,वे नहीं जानते थे (पृ0 112 ) प्रेम के संसार में वर्जना और भय चुपके से प्रविष्ट होते हैं, भय का रिश्ता क़ायम होता है छल- प्रपंच और साज़िशें पलती हैं किंतु स्वप्न सबको धूमिल कर देता है। अनुरक्त जेम्स देखता है अपने भीतर झॉंककर ...एक काला पक्षी...खाखा, जो बेहद सुंदर ,स्फूर्त और बेहद सक्रिय व चंचल है। उसे सोज़ेलिन मिंज एक ख़ूबसुरत मछली की तरह दिखायी पड़ती है। यही वह क्षण है प्रेम का जिसमें मन की सारी गॉंठें खुल जाती हैं। अनुरक्त सोज़ेलिन अपनी नींद में मुक्त होती है, भय के रिश्ते से वह जान जाती है राग-रव वह सुन लेती है खाखा पक्षी की चहक !
उम्मीदों की ज़मीं...............मुट्ठियों में एक अमूर्त भय, ...............पलायन
जेम्स खाखा सन ऑफ़ अलेक्ज़ेंडर खाखा आज रोम जाने के लिए चुना गया है किंतु वह असहज है, वह तय नहीं कर पा रहा है कि यह उसके आनंद का क्षण है या नहीं ! तीन साल तक वह अपनी ज़मीन से दूर -सोज़ेलिन से दूर रहेगा। सोज़ेलिन उसे अपनी ओर खींच रही है। सिस्टर अनास्तसिया और मॉं के चेहरे उसके सामने उपस्थित हो रहे हैं। रोम जाने के लिए जेम्स का चयन उसके जीवन की 'ग्रेट अपार्चुनिटी' है किंतु और भी बातें हैं जहॉं जेम्स का मन अटका हुआ है। जेम्स समझ नहीं पा रहा है कि 'क्या यही उसके उम्मीदों की ज़मीं है ? फिर उम्मीद भी केवल उसकी नहीं है। अब वह अकेला कहॉं है। अक्सर विचारशील जेम्स के सम्मुख अब अनुरक्त जेम्स आ खड़ा होता है। विचारों में खोया हुआ जेम्स बाज़ार से विचरता है, जहॉं तरह-तरह की चीज़ें हैं ये चीज़ें आदिम ज़द से मुक्त होना चाहती हैं। वह देखता है कि हाट अब बाज़ार में तब्दील हो गया है और बाज़ार जो विज्ञापन का मुरीद है, धीरे-धीरे सब कुछ खा रहा है। टेलीविज़न के पर्दे पर हाट की सारी चीज़ें बाज़ार के विज्ञापन में शामिल होकर सरगुजा के कलेक्टर और उसकी पत्नी को सरप्राइज़ करेंगी। यहॉं जेम्स के उम्मीदों की ज़मीं सरकती है, संस्कृति के बाजारू होने की एक टीस उठती है। जेम्स की भावुकता और सोच की तीव्रता में तेजिंदर जिस आख्यान को रचते हैं उसकी भाषा श्लाघ्य है......''उसने अपनी मुट्ठियों में एक अमूर्त भय को छिपा रखा था जिसे वह किसी पक्षी की तरह बिशपस्वामी के कमरे में छोड़ देना चाहता था।'' ( पृ0 120 ) जेम्स के लिए यह कहना उसके चरित्र को तर्कसंगत करना है, ऐसा लगता है जैसे तेजिंदर आख्यान के भीतर कविता रचते हैं। ''उसके मन के अंदर एक चीता है जो दौड़ता रहता है, एक तेज़ तर्रार चोंच और बड़े-बड़े पंखों वाला पक्षी है जो आसमान में उड़ता रहता है।'' ( पृ0 120 ) ऐसे कथन जहॉं तेजिंदर की उपलब्धि है वहीं जेम्स के चरित्र के उन्नायक । जेम्स के मानस में बराबर उथल-पुथल बनी रहती है। उसका आत्मबोध बार-बार उसे विवश करता है, रोम तक जाना उसे पलायन लगता है जबकि जेम्स परिस्थितियों से दूर भागने से बचता रहता है।
जेम्स बिशपस्वामी के भीतर के दुष्ट व्यक्ति को जान लेता है। बिशप जो कभी राजा की तरह होता है तो कभी एक कुशल व वाकपटु राजनीतिज्ञ की तरह । वह जेम्स के द्वारा भूख की दलीलों को नहीं मानता वह जेम्स से साफ़-साफ़ कह देता है....... ''हमें अपनी स्ट्रेटेजीबहुत सोच समझकर तय करनी होगी कि कहीं हमारी सेवा या प्रार्थना का लाभ कॉंग्रेस या आर. एस. एस. को न मिल जाये,'' ( पृ0 123 ) यह उसकी राजनैतिक दूरदृष्टि है, यही दृष्टि धर्मप्रांत में प्रार्थना और सेवा के राजनैतिक महत्व को उजागर करती है । यहॉं निस्वार्थ धर्मभाव महज एक छल है । वह जेम्स के सच और दलित संघर्ष को एक सपना और दुनिया के इस महालोकतंत्र को बाज़ार कहता है किंतु जेम्स का प्रतिरोध भी खुलकर सामने आता है वह बिशप से स्पष्ट कह देता है कि.... '' सपनो के इस बाज़ार पर आपका अधिकार ख़त्म हो रहा है।'' (पृ0 124 ) बिशप के चेहरे पर एक क्रूर जमींदार का चेहरा उतर आता है जो अपने बंधुआ मज़दूर के चेहरे पर विद्रोह की रेखाऍं पढ़ लेता है। बिशप एक शोषक है और जेम्स शोषित। बिशपस्वामी जेम्स के आत्मबोध, अतीत के प्रति लगाव और अंत: परिवर्तन को बूझ लेता है इसलिए उन दोनो में एक नई तरह की ज़िरह होती है। जेम्स खाखा की छटपटाहट जंगल में व्याप्त समाज की छटपटाहट, एक-एक आदिवासी की भूख उसे सताती है तभी तो वह बीशपस्वामीसे यह सवाल करता है,...... ''भूख हमेशा दलित या आदिवासी ही क्यों होती है ? " ( पृ0 123 ) जेम्स का यह आवेश स्वाभाविक है जो धर्म के छद्म को खोल देता है, साम्राज्यवादी व्यूह को तोड़ देता है।
*******************
एक ख़ूबसुरत मछली.......राग-रव........खाखा पक्षी की चहक.................
मनुष्य की रागात्मकता मिट नहीं सकती। आस्था, धर्म, कर्मकांड, साधना, विश्वास, विचारधारा, रीति-रिवाज, धर्म-संस्कृति या जीवनशैली का कोई भी आवरण उसे ढँक तो सकता है किंतु नष्ट नहीं कर सकता। जेम्स और सोज़ेलिन के मध्य उपस्थित राग में एक दैवीय आकर्षण है जो उन्हें परस्पर खींचता-बॉंधता और मुक्त करता है। चेन्द्रा घाट के पास घास पर लेटा जेम्स और उसके सामने बैठी सोज़ेलिन, उनके मध्य का मौन और फिर चेंद्रा में प्रवाहित जल के स्पर्श से मुखर होता मौन उन्हें पूर्णत: अनुरक्त कर देता है-उन्हें एक कर देता है। दृष्टव्य है जेम्स का आभास......''उसे लगा कि गाजर घास उत्तम देश की बढ़िया फ़सल है। उसके आसपास बड़े-बड़े पत्थर थे जो सुंदर ग़लीचों की तरह लग रहे थे। मिट्टी की चादरें थीं, कोसे पानी का बहता झरना था, दूर-दूर तक नरम घास थी , गाजर घास के बीच लाल गाजर की कल्पना थी। सब कुछ था। वह था, सोज़ेलिन थी। पर कुछ नहीं था, क्योंकि बहुत कुछ ऐसा था जो उनके लिए वर्जित था। क्यों वर्जित था,वे नहीं जानते थे (पृ0 112 ) प्रेम के संसार में वर्जना और भय चुपके से प्रविष्ट होते हैं, भय का रिश्ता क़ायम होता है छल- प्रपंच और साज़िशें पलती हैं किंतु स्वप्न सबको धूमिल कर देता है। अनुरक्त जेम्स देखता है अपने भीतर झॉंककर ...एक काला पक्षी...खाखा, जो बेहद सुंदर ,स्फूर्त और बेहद सक्रिय व चंचल है। उसे सोज़ेलिन मिंज एक ख़ूबसुरत मछली की तरह दिखायी पड़ती है। यही वह क्षण है प्रेम का जिसमें मन की सारी गॉंठें खुल जाती हैं। अनुरक्त सोज़ेलिन अपनी नींद में मुक्त होती है, भय के रिश्ते से वह जान जाती है राग-रव वह सुन लेती है खाखा पक्षी की चहक !
उम्मीदों की ज़मीं...............मुट्ठियों में एक अमूर्त भय, ...............पलायन
जेम्स खाखा सन ऑफ़ अलेक्ज़ेंडर खाखा आज रोम जाने के लिए चुना गया है किंतु वह असहज है, वह तय नहीं कर पा रहा है कि यह उसके आनंद का क्षण है या नहीं ! तीन साल तक वह अपनी ज़मीन से दूर -सोज़ेलिन से दूर रहेगा। सोज़ेलिन उसे अपनी ओर खींच रही है। सिस्टर अनास्तसिया और मॉं के चेहरे उसके सामने उपस्थित हो रहे हैं। रोम जाने के लिए जेम्स का चयन उसके जीवन की 'ग्रेट अपार्चुनिटी' है किंतु और भी बातें हैं जहॉं जेम्स का मन अटका हुआ है। जेम्स समझ नहीं पा रहा है कि 'क्या यही उसके उम्मीदों की ज़मीं है ? फिर उम्मीद भी केवल उसकी नहीं है। अब वह अकेला कहॉं है। अक्सर विचारशील जेम्स के सम्मुख अब अनुरक्त जेम्स आ खड़ा होता है। विचारों में खोया हुआ जेम्स बाज़ार से विचरता है, जहॉं तरह-तरह की चीज़ें हैं ये चीज़ें आदिम ज़द से मुक्त होना चाहती हैं। वह देखता है कि हाट अब बाज़ार में तब्दील हो गया है और बाज़ार जो विज्ञापन का मुरीद है, धीरे-धीरे सब कुछ खा रहा है। टेलीविज़न के पर्दे पर हाट की सारी चीज़ें बाज़ार के विज्ञापन में शामिल होकर सरगुजा के कलेक्टर और उसकी पत्नी को सरप्राइज़ करेंगी। यहॉं जेम्स के उम्मीदों की ज़मीं सरकती है, संस्कृति के बाजारू होने की एक टीस उठती है। जेम्स की भावुकता और सोच की तीव्रता में तेजिंदर जिस आख्यान को रचते हैं उसकी भाषा श्लाघ्य है......''उसने अपनी मुट्ठियों में एक अमूर्त भय को छिपा रखा था जिसे वह किसी पक्षी की तरह बिशपस्वामी के कमरे में छोड़ देना चाहता था।'' ( पृ0 120 ) जेम्स के लिए यह कहना उसके चरित्र को तर्कसंगत करना है, ऐसा लगता है जैसे तेजिंदर आख्यान के भीतर कविता रचते हैं। ''उसके मन के अंदर एक चीता है जो दौड़ता रहता है, एक तेज़ तर्रार चोंच और बड़े-बड़े पंखों वाला पक्षी है जो आसमान में उड़ता रहता है।'' ( पृ0 120 ) ऐसे कथन जहॉं तेजिंदर की उपलब्धि है वहीं जेम्स के चरित्र के उन्नायक । जेम्स के मानस में बराबर उथल-पुथल बनी रहती है। उसका आत्मबोध बार-बार उसे विवश करता है, रोम तक जाना उसे पलायन लगता है जबकि जेम्स परिस्थितियों से दूर भागने से बचता रहता है।
जेम्स बिशपस्वामी के भीतर के दुष्ट व्यक्ति को जान लेता है। बिशप जो कभी राजा की तरह होता है तो कभी एक कुशल व वाकपटु राजनीतिज्ञ की तरह । वह जेम्स के द्वारा भूख की दलीलों को नहीं मानता वह जेम्स से साफ़-साफ़ कह देता है....... ''हमें अपनी स्ट्रेटेजीबहुत सोच समझकर तय करनी होगी कि कहीं हमारी सेवा या प्रार्थना का लाभ कॉंग्रेस या आर. एस. एस. को न मिल जाये,'' ( पृ0 123 ) यह उसकी राजनैतिक दूरदृष्टि है, यही दृष्टि धर्मप्रांत में प्रार्थना और सेवा के राजनैतिक महत्व को उजागर करती है । यहॉं निस्वार्थ धर्मभाव महज एक छल है । वह जेम्स के सच और दलित संघर्ष को एक सपना और दुनिया के इस महालोकतंत्र को बाज़ार कहता है किंतु जेम्स का प्रतिरोध भी खुलकर सामने आता है वह बिशप से स्पष्ट कह देता है कि.... '' सपनो के इस बाज़ार पर आपका अधिकार ख़त्म हो रहा है।'' (पृ0 124 ) बिशप के चेहरे पर एक क्रूर जमींदार का चेहरा उतर आता है जो अपने बंधुआ मज़दूर के चेहरे पर विद्रोह की रेखाऍं पढ़ लेता है। बिशप एक शोषक है और जेम्स शोषित। बिशपस्वामी जेम्स के आत्मबोध, अतीत के प्रति लगाव और अंत: परिवर्तन को बूझ लेता है इसलिए उन दोनो में एक नई तरह की ज़िरह होती है। जेम्स खाखा की छटपटाहट जंगल में व्याप्त समाज की छटपटाहट, एक-एक आदिवासी की भूख उसे सताती है तभी तो वह बीशपस्वामीसे यह सवाल करता है,...... ''भूख हमेशा दलित या आदिवासी ही क्यों होती है ? " ( पृ0 123 ) जेम्स का यह आवेश स्वाभाविक है जो धर्म के छद्म को खोल देता है, साम्राज्यवादी व्यूह को तोड़ देता है।
*******************