शनिवार, 5 नवंबर 2011

आदमी का बच्‍चा, सबब और भय का अंधा समय

आदमी का बच्‍चा 

आदमी का बच्‍चा
नहीं भर सकता कुलॉंचें
रँभाती गायों के
नवजात बछड़ों की तरह

अभि‍शप्‍त है वह
पैदा होते ही रोने को

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सबब 

आज़ाद औरतें जानती हैं
कि
वाक़ई कि‍तनी आज़ाद हैं वे

वे जानती हैं अपने जि‍स्‍म और रूह के दरमि‍यान
भटकते-फटकते  शरारती फौवारें

उन्‍हें मालूम है उनके तन और मन के बीच
आज़ादी की कि‍तनी पतली धार है

फासलों की बात अगर छोड भी दें तो
वे जानती हैं बातों के छूट जाने का सबब

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भय का अंधा समय  

भय का अंधा समय
धर्म की लाठी लेकर
पार करना चाहता है
नि‍रपेक्ष रास्‍तों को

वैधानि‍क चेतावनी के बावजूद
नशे में धुत्‍त हो जाता है एक नागरि‍क
राजस्‍व प्राप्‍त कर ख़ुश है प्रशासन
नशा मुक्‍ति‍ अभि‍यान के लि‍ए
पर्याप्‍त धन पाकर ख़ुश हैं स्‍वयंसेवी संगठन

साधु-संत, पुजारी और धर्मानुयायी
पूजा-अर्चना और प्रार्थना से कारगर मानते रहे हैं
जलसा-जुलूस और आंदोलन को

अराजकता और आतंक के अनुबंध
मुँहमॉंगी कीमत पर तय हो रहे हैं
रक़म अदायगी का अनुशासन है

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2 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

सभी रचनाएँ बहुत सुंदर...पहली रचना दिल को गहराई तक छू जाती है..

Nityanand Gayen ने कहा…

सभी रचनाएँ बहुत सुंदर

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