शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

आख्‍यान - 2

सवाल ट्रीटमेंट का....................आग की लपटें

                   उपन्‍यास में जहॉं लेखकीय हस्‍तक्षेप प्रारंभ होता है वहॉं शुरू में तो उरॉंव लोगों की उत्‍पत्‍ति‍ के खोजबीन की कोशि‍श की गई है किंतु लेखक शीघ्र ही मूल सवालों पर आ जाता है, क्‍योंकि‍ सत्‍य का कोई प्रामाणि‍क इति‍हास नहीं है न ही अस्‍ति‍त्‍व के उत्‍स का प्रमाण। आदि‍त्‍य जानना चाहता है...जेम्‍स से जानना चाहता है कि‍ उरॉंव आदि‍वासी अपनी वि‍शि‍ष्‍ट जीवन शैली और नि‍जी संस्‍कृति‍ के बावजूद मि‍शनरीयों की शरण में क्‍यों चले गये ? जेम्‍स अन्‍य बातों के साथ एक बेहद महत्‍वपूर्ण बात कहता है....''जि‍स समय हमें अपने ही देश और समाज के लोगों के बीच जंगलि‍यों और आदि‍वासि‍यों की तरह रहना पड़ रहा था, ऐसे कठि‍न समय में उन्‍होंने बताया कि‍ तुम मनुष्‍य हो, हमारी तरह । यह हमारे लि‍ए एक ऐसी बात थी कि‍ जि‍सके सामने जीवन छोटा था और हमारे पूर्वज उनके साथ हो गये।'' (पृ0 92.) यह जेम्‍स के धर्मांतरण की आत्‍मस्‍वीकृति‍ है। आज भी कि‍तना स्‍वीकार करता है हमारा समाज आदि‍वासि‍यों को, यह सोचनीय है।दो बच्‍चों सहि‍त स्‍टैंस की हत्‍या जेम्‍स और सोज़ेलि‍न मिंज को गहरे प्रभावि‍त करती है। आदि‍त्‍य उनकी सोहबत के बावजूद इस मनोवैज्ञानि‍क तर्क से जूझता है कि‍ ग़ैरआदि‍वासी होने के कारण वह जेम्‍स और सोज़ेलि‍न की संवेदनशीलता को महसूस करने से चूक तो नहीं रहा किंतु शीघ्र इस ख़याल को झटक देता है। सोज़ेलि‍न मिंज को गहरा आघात स्‍टेंस की पत्‍नी जो उन दो बच्‍चों की मॉं थी,को लेकर था।वह उसका दोष जानना चाहती है।एक स्‍त्री होने के नाते वह स्‍पष्‍ट महसूस कर रही थी उसकी दशा को। सोज़ेलि‍न उद्वेलि‍त होती है - करती है। सारे मनुष्‍य यदि‍ निर्वस्‍त्र हो जाए तो प्राकृति‍क रूप नि‍र्मि‍त हो जाएगा, कि‍सी में कोई फ़र्क़ ही नही़ रह जायगा किंतु वैचारि‍क बर्बरता बनी रहेगी। यदि‍ धर्म, वि‍चारधारा - भेदभाव की खोलों से बाहर आए तो, मनुष्‍य ....केवल मनुष्‍य है, कोई अनुयायी - वि‍चारक या धर्मावलंबी नहीं।


दे शुड ज्‍वाईन द मेन स्‍ट्रीम ऑफ़ नेशनल लाईफ़,..................................... 


                          सि‍स्‍टर अनास्‍तासि‍या की अवस्‍थि‍ति‍ स्‍वाभावि‍क है। वह शांत है  या अशांत हो तो भी उसके मन की कोई हलचल दि‍खलाई नहीं पड़ती । वह अब पवि‍त्र बाइबि‍ल के अति‍रि‍क्‍त अन्‍य कि‍ताबें पढ़ती रहती है। नामनाकला चर्च के बाहर हुए बमवि‍स्‍फोट  के बाद से वह भयभीत है। वह जेम्‍स के प्रति‍ चिंति‍त है। अनास्‍तासि‍या जेम्‍स को लेकर अपने बचपन में जाती रहती है और भाई - बहन के मध्‍य लाड़ - दुलार की वत्‍सल स्‍मृति‍ जाग उठती है। जेम्‍स बातचीत के दौरान उससे पुछता है कि‍सी और राह के बारे में किंतु अनास्‍तासि‍या के पास इसका कोई जवाब नहीं है। वह महसूस करती है कि‍ उनके पास चच्र और मि‍शनरीज़ का कोई वि‍कल्‍प नहीं है जबकि‍ वह स्‍वयं हिंसा के दुख और वि‍षाद से ग्रस्‍त है। चर्च/मि‍शनरीज़ के प्रति‍ उसकी आस्‍था डगमगा जाती है और हिंदूवादी संगठनों का हिंसक रूप उसे आशंकि‍त करता है। हिंसा और असुरक्षा के इस समय को सवाल बनाकर वह आदि‍त्‍य के सम्‍मुख उपस्‍थि‍त करती है किंतु आदि‍त्‍य बड़े अच्‍छे ढंग से उन्‍हें राष्‍ट्रीय धारा में शामि‍ल होने के लि‍ए कहता है। आदि‍त्‍य का मानना है कि‍ जो कुछ भी हो रहा है वह एक राजनैति‍क परि‍दृश्‍य है, वॉंछि‍त है ऐसे में ईसाई मि‍शनरि‍यों को अलग - थलग न रहकर राष्‍ट्रीय जीवन की मुख्‍य धारा में शामि‍ल होना चाहि‍ए। अनास्‍तासि‍या असहमत रहती है आदि‍त्‍य के इस मंतव्‍य से किंतु उसके भीतर धर्मांतरण के बाद की स्‍थि‍ति‍ ....अपमानबोध आकार लेता है। दरअसल वह धर्मांतरण के ज़रि‍ये जि‍स सभ्‍यता - संस्‍कृति‍ और जीवन की चकाचौंध के आकर्षण की ज़द में जाती है, शीघ्र ही उसका मोहभंग होता है और वह अपनी जड़ों की ओर लौटना चाहती है.....यही वह स्‍थि‍ति‍ है जहॉं वह और उसका भाई जेम्‍स भी अवसन्‍न है, परि‍णामत: एक चुप्‍पी हे, भीतर ही भीतर खोदती हुई। हिंसा और असुरक्षा उन्‍हें लगातार भयभीत कर रही है। आदि‍त्‍य, जेम्‍स और अनास्‍तासि‍या की यह ज़ि‍रह धर्म-परि‍वर्तन के कारणों की खोज है। अनास्‍तासि‍या वी. एस. नायपाल की इस बात को नकार देती है कि‍ पहले हम अपना धर्म रि‍जेक्‍ट करते हैं तब हम दूसरा धर्म स्‍वीकार करते हैं। (पृ0 104) वह नायपाल की दूसरी बात जो बाबरी मस्‍जि‍द के संदर्भ में थी, उसे एक खीज या झल्‍लाहट कहती है। वह यहॉं साम्‍प्रदायि‍कता का एक बंद कपाट खोलती है.....''मुझे तो लगता है कि‍ वी. एस. नायपाल जैसे बुद्धि‍जीवी और पश्‍चि‍म का मीडि‍या हमारी बहूत सारी परेशानि‍यों के लि‍ए ज़ि‍म्‍मेदार हैं और दे मस्‍ट बी इग्‍नोरड, इफ़ वी वि‍श यू सैटल पीसफुली। यह उनके षड्यंत्र का हि‍स्‍सा है, वे यह तय करते हैं कि‍ इस साल हिंदू सि‍ख, फि‍र अगले साल हिंदू मुसलमान और फि‍र हिंदू ईसाई, वे हमारी बि‍सात पर अपनी मोहरे खेलते हैं जि‍नके निर्णायक वे स्‍वयं ही होते हैं।'' (पृ0 104) अनास्‍तासि‍या की यह बात उल्‍लेखनीय है जो कि‍ आज का भयावह सच है।भषा, जाति‍ और धर्मों के इस अजायब घर में बाहरी इशारों से कठपुतलि‍यों की तरह नचाये जाते हैं लोग। साम्‍प्रदायि‍क हिंसा की शुरूआत थोपी गई या ओढ़ी गई वैचारि‍क हिंसा से होती है। अनास्‍तासि‍या शांत है, उसका उदास चेहरा उसे शांत प्रदर्शि‍त करता है।

'इट वाज़ ए रि‍वोल्‍यूशनरी जजमेंट',............................................................ 


.........................क्रमश:...........देखें..... समापन कि‍स्‍त.............................................................
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