रविवार, 21 अक्तूबर 2012

आँधि‍याँ


जहाँ  दो  पल  बैठा  करते  हम-तुम, 
उन दरख्‍़तों को उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 

छुआ करते जि‍न बुलंदि‍यों से आसमाँ, 
उन  परबतों  को उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 

महक-महक  उठते  जो  ख़ुशबू  से, 
उन  खतों को उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 

सि‍लवट से जि‍नकी भरा होता बि‍छौना, 
उन  करवटों  को  उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 

जुटाती    ताक़त    जो    लड़ने    की, 
उन हसरतों को उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 

पुख्‍़ता  और  भी जि‍नसे होती उम्‍मीदें, 
उन तोहमतों को उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 
                                                           -1995 ई0
                 ००००००

5 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 24/10/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

बेनामी ने कहा…

It was a excitement locating your site yesterday. I came here right hoping to learn something new. And I was not dissatisfied. Your well thought out ideas for new events like this. Thank you for this idea and sharing your knowledge.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया
विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

बेनामी ने कहा…

प्रभावशाली रचना ,ह्रदयस्पर्शी !!!

mridula pradhan ने कहा…

wah.....kya baat hai.

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...