छद्म हमें अपनी दुनिया में अकेला
विवश करता है
होने के लिए ।
हम तड़पते हैं और चीख़ नहीं पाते !
कोई भी कर सकता है हमारी मदद
पर, हम, पु का र ते नहीं
!
आतंकित होकर भी आतंकित नहीं होते
चलते हैं दौड़ने की तरह
दौड़ते हैं चलने की तरह
आसपास की चीज़ों को
शक्की की तरह निहारते हैं
'संदिग्ध चीज़ों में विस्फोट का ख़तरा है'
ख़तरे बहुत से हैं
ख़तरों से बचने के उपाय बहुत से हैं
बहुत से हैं भय
भय से बच सकते हैं
पर, बचते नहीं हैं
ख़तरों से बच सकते हैं
पर बचते नहीं हैं
बचकर भी भागते हैं तो बच नहीं पाते
जैसे-तैसे
जी लेते हैं _ अभिनय की तरह
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7 टिप्पणियां:
जैसे-तैसे जी लेते हैं...
शानदार अभिव्यक्ति...
सादर
जीना तो हर हाल मे है
चाहे अभिनय करो या अभिमन्यु बनो
चाहे अभिनय करो या अभिमन्यु बनो
चाहे छद्म वेश धारण करो या जैसे तैसे जीयो
चाहे विध्वंसक बनो या खतरों से बचो
चाहे चित्कार करो या जोर से हँसो
चाहे भूत मे जियो या भविष्य को संजो लो
चाहे अंधकार मे देखो या प्रकाश मे नेत्र बंद करो
चाहे कितने ही तुम चक्रव्यूह रचो
चाहे कितना ही अभिमन्यु बनो
चाहे कितना ही खुद को अभिमन्त्रित करो
जीना तो वर्तमान है या कहो जीना तो हर हाल मे है
अभिनय की तरह जीना...
बहुत खूब....!!
कितना विषम है जीना और वो भी जीने का अभिनय करते हुवे ...
ये तो एकदम नया नज़रिया पेश किया है आपने
शानदार
ऐसे ही लिखते रहें आप
शुभकामनायें
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