उत्‍तमराव क्षीरसागर

जो आग होना चाहते हैं / सुलगते हैं बरसो / यह जानकर भी / कि राख हो जाएँगे!

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गुरुवार, 7 मार्च 2013

सात मार्च


प्रस्तुतकर्ता : Uttamrao Kshirsagar उत्‍तमराव क्षीरसागर समय 9:24 pm 0 टिप्पणियाँ
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कहॉं-कि‍सने रचा है सपना / कहॉं है-कहॉं है वो कारीगर / अपने तसव्‍वुर में खोया हुआ / हक़ीक़त के इस दौर में / तराश रहा है जो वक्‍़त को / और रच रहा है सपनों की दुनि‍या / सुनो, सुनो ओ कारीगर! / वक्‍़त को तराशते हो तो कोई / अच्‍छा-सा लम्‍हा रचो / ऐसा लम्‍हा / कि‍ प्‍यार को न तरसे कोई ..... और सुनो! / इस दौर की हक़ीक़त का कि‍स्‍सा / कि‍ दुनि‍या बदल रही है बाज़ार में / जहॉं बि‍कते हैं सपने / सपनों का वक्‍़त बि‍कता है / वक्‍़त की तराश बि‍कती है / इसलि‍ए, बचो / बि‍कने से बचा लो अपना हुनर / और कोई सपना/रचेगा इस दौर की हक़ीक़त को / तब क्‍या होगा तुम्‍हारे कि‍रदार का / फि‍र कि‍स काम आएगा हुनर ...

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