चल उठ एक नई ज़िंदगी का आगाज़ कर,
पेट खाली ही सही आसमानों की परवाज़ कर ।
मान भी ले अब यह ज़िद अच्छी नहीं,
''मिल गया 'यूटोपिया' का रास्ता'' ये आवाज़ कर ।
लबों पे आने मत दे नाम तख्तो-ताज का,
बस उसको दुआ दे, 'जा राज कर ।
लाख करे कोई उजालों की बात, बहक मत,
तू फ़क़त ज़िंदा रह और ज़िंदगी पे नाज कर ।
१९९५ ई०
०००००
2 टिप्पणियां:
भीड़ से हटकर अपनी धुन पर चलती कविता
बहुत अलग मिजाज़ की रचना .....बहुत खूब
अपना पता छोड़ रही हूँ ..कृपया नजर डालें ...
http://shikhagupta83.blogspot.in/
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