रविवार, 28 अक्तूबर 2012

क़त्‍ल के बाद


गि‍लास भर पानी की तरह 
पी जाता हूँ अपनी नींद को 

आँखें जैसे खाली गि‍लास 

देखता हूँ, एक कमरे की 
रोशनी से बाहर का अँधेरा 

दूर-दूर तक अँधेरा 

अँधेरे में सोया हे जग सारा 
खोया-खोया-सा 
अपने सुख-चैन में 
मुग्‍ध-तृप्‍त 

भीतर टटोलता हूँ अपने
 कुछ मि‍लता नहीं ! 
कमरा भर रोशनी के क़त्‍ल के बाद 
अपने भीतर 
पाता हूँ बहुत-सी चीज़ें
अँधेरे में साफ़-साफ़ 
                                            -2001 ई0 

        ०००००

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

आँधि‍याँ


जहाँ  दो  पल  बैठा  करते  हम-तुम, 
उन दरख्‍़तों को उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 

छुआ करते जि‍न बुलंदि‍यों से आसमाँ, 
उन  परबतों  को उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 

महक-महक  उठते  जो  ख़ुशबू  से, 
उन  खतों को उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 

सि‍लवट से जि‍नकी भरा होता बि‍छौना, 
उन  करवटों  को  उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 

जुटाती    ताक़त    जो    लड़ने    की, 
उन हसरतों को उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 

पुख्‍़ता  और  भी जि‍नसे होती उम्‍मीदें, 
उन तोहमतों को उड़ा ले गई आँधि‍याँ। 
                                                           -1995 ई0
                 ००००००

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

लम्‍हों की रवि‍श


देखना,  तुम 
अब छूटा के तब छूटा 
         - तीर / लगेगा ऐसा ....और 
तनी हुई प्रत्‍यंचा की 
          टूट जाएगी 
      डोर --- साँसों की 


और ... देखना 
शीशे - सी पि‍घलती 
बर्फ - सी घुलती 
रि‍स - रि‍स कर बहती 
क़ त रा - क़ त रा 
छुटती - छटपटाती 
आखि‍र,  आख़ि‍री तक 
टूटती - फूटती - दरकती 
            लम्‍हों की रवि‍श 


    दहशत में चाँद 
    भटका करेगा रात - रात भर 
    जगमग - जगमग जगमगाकर जुगनू 
    बाँट चुके होंगे अपने हि‍स्‍से की रोशनी, 
    लटका रहेगा रात का कंबल काला 
    रंगों की ओट सो चुकी होंगी कि‍रणें 
    मछलि‍याँ तैरेंगी हवा में 
    जल अटकेगा कंठ में फाँस की तरह 
    टूटे तारे - सा छि‍टक जाएगा आँख से 
                                        एक आँसू 
    नि‍वीड़ एकांत अंतरि‍क्ष में 
    वह दीप्‍त आभा रह जाएगी 
                                                     -2000 ई0 

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