बुधवार, 26 सितंबर 2012

जैसे ईश्‍वर


जैसे ईश्‍वर 
नि‍हारता है धरती को 
फि‍र करता है उर्वर परती को 
वह रचता है एक कि‍सान में मेहनत का जज्‍बा 
और भेज देता है गौएँ चरने के लि‍ए 
पूरी फ़सल चाट कर 
गौमाताएँ करती हैं जुगाली 

फि‍र वही जज्‍बा 
काम करता है 
फि‍र जोतता है खेत, कि‍सान 
गौमाताओं की संतानों को फाँदकर 
कोचकता है तुतारी उनके पुष्‍ट पुट्ठों पर 
अपना पुश्‍तैनी गुस्‍सा नि‍कालते हुए 

मुसकराता है ईश्‍वर 
अपनी रचनात्‍मक ज़िद पर 
और रचता है फि‍र 
                                           2001 

      **********

6 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 28/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

vandana gupta ने कहा…

्सुन्दर प्रस्तुति

mridula pradhan ने कहा…

alag si......achchi lagi.....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह....
बेहद सुन्दर रचना....

सादर
अनु

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव प्रणव अभिव्यक्ति ....
सादर !!

काव्य संसार ने कहा…

सुंदर भावपूर्ण रचना |
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काव्य का संसार

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