गुरुवार, 25 नवंबर 2010

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं

ग़ज़ल 

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, 
होते हैं और नहीं भी होते हैं। 

सब ढोंग-धतूरे अपने ही मूल्‍क में नहीं, 
अच्‍छे-बुरे लोग हर कहीं होते हैं। 

बेकार पूजते हैं हम अपनी इच्‍छाओं को, 
सब कुछ  पा लेने वाले भी ख़ुश नहीं होते हैं। 

हरे-भरे सपने से जुदा है रोज़गार, 
नहरें खोदने वाले सभी प्‍यासे नहीं होते हैं। 

जि‍से जो समझना था समझा है ख़ुद को, 
सारे ग़लत लोग कभी सही भी होते हैं। 

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रविवार, 14 नवंबर 2010

ऐसा भी क्‍या, कि‍ ...

दर्द ऐसा भी क्‍या
कि‍ कहते बने न सहते बने
घर ऐसा भी क्‍या
कि‍ रहते बने न ढहते बने

दरि‍या-दरि‍या, पानी-पानी
कस्‍ती-कस्‍ती मौज रवानी
मगर ऐसा भी क्‍या
कि‍ रूकते बने न बहते बने

मंजि‍ल-मंजि‍ल, रस्‍ता-रस्‍ता
बस्‍ती-बस्‍ती पैर दस्‍ता
पर ऐसा भी क्‍या
कि‍ उड़ते बने न मुड़ते बने

कौन देगा ख़बर हवा बीमार है
बि‍गड़ती तासीर की दवा बीमार है

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