शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

इंसां को इंसां से........

इंसां को इंसां से  बैर  नहीं है
फि‍र भी इंसां की ख़ैर नहीं है 

ये क़ाति‍ल जुल्‍मी औ' डाकू लुटेरे 
अपने  ही  हैं  सब   ग़ैर   नहीं  हैं 

अच्‍छाई  की   राहें  हैं   हज़ारों
उन पर चलने वाले पैर नहीं हैं 

दूर बहुत दूर होती हैं मंजि‍लें अक्‍सर 
लंबा  सफ़र  है  यह  कोई सैर नहीं है 

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3 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

बढ़िया है उत्तम लेकिन गज़ल मुकम्मल होने मे एक शेर की कमी है ।

Anoop ने कहा…

ख़ूब....

The guy sans voice ने कहा…

badhiya saahab !

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