गुरुवार, 25 नवंबर 2010

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं

ग़ज़ल 

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, 
होते हैं और नहीं भी होते हैं। 

सब ढोंग-धतूरे अपने ही मूल्‍क में नहीं, 
अच्‍छे-बुरे लोग हर कहीं होते हैं। 

बेकार पूजते हैं हम अपनी इच्‍छाओं को, 
सब कुछ  पा लेने वाले भी ख़ुश नहीं होते हैं। 

हरे-भरे सपने से जुदा है रोज़गार, 
नहरें खोदने वाले सभी प्‍यासे नहीं होते हैं। 

जि‍से जो समझना था समझा है ख़ुद को, 
सारे ग़लत लोग कभी सही भी होते हैं। 

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4 टिप्‍पणियां:

Dr Xitija Singh ने कहा…

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ... आखरी शेर बहुत पसंद आया ...

शरद कोकास ने कहा…

यह गज़ल है या कविता ?

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति. आखिरी शेर लाज़वाब ..

RAJWANT RAJ ने कहा…

beshk shi hote hai lekin vidmbna ye hoti hai ki glti ka jo thppa lg jati hai ek bar fir use mitana bhut mushkil ho jata hai , bavjood iske jb kbhi vo shi hote hai to shi hi hote hai .
bhut khoob !

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