रविवार, 14 नवंबर 2010

ऐसा भी क्‍या, कि‍ ...

दर्द ऐसा भी क्‍या
कि‍ कहते बने न सहते बने
घर ऐसा भी क्‍या
कि‍ रहते बने न ढहते बने

दरि‍या-दरि‍या, पानी-पानी
कस्‍ती-कस्‍ती मौज रवानी
मगर ऐसा भी क्‍या
कि‍ रूकते बने न बहते बने

मंजि‍ल-मंजि‍ल, रस्‍ता-रस्‍ता
बस्‍ती-बस्‍ती पैर दस्‍ता
पर ऐसा भी क्‍या
कि‍ उड़ते बने न मुड़ते बने

कौन देगा ख़बर हवा बीमार है
बि‍गड़ती तासीर की दवा बीमार है

    *************

5 टिप्‍पणियां:

Dr Xitija Singh ने कहा…

मगर आपकी रचना की तासीर बहुत गहरी है ... बहुत खूब ...

vandana gupta ने कहा…

बाल दिवस की शुभकामनायें.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

The guy sans voice ने कहा…

बहुत ही बढ़िया !!!!! आपके कलम को सलाम करता हूँ .

http://dreamsruins.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना ....

शरद कोकास ने कहा…

यह तो नव गीत जैसा कुछ लग रहा है ।

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