मंगलवार, 21 सितंबर 2010

स्‍वप्‍न

बुद्धू !
चॉंद कहीं फलता है क्‍या ?
हॉं, एक आसमानी पेड़ था धरती पर
ऊपर सबसे ऊपर की शाख पर
अटका था चॉंद
और शाखों-टहनियों पर छिटके थे तारे
सच ! सबकुछ झिलमिला रहा था
पूरी धरती - पूरा आसमान

कोई चिडिया नहीं  थी क्‍या ?
बुद्धू !
चिडिया सब सो रही थीं
घोसलों के किवाड बंद थे
कहीं कोई आवाज़ नहीं
बहुत सन्‍नाटा एकदम शांत सब
चिडिया सॉंस भी ले रही थीं या नहीं
कुछ मालूम नहीं ?

दूर-दूर तक फैले इस सन्‍नाटे में
सुनाई पडती है एक पुकार
तभी टूटकर गिर जाता है चॉंद धरती पर
और गु़म होता जाता है कहीं
छिटककर तारे चले जाते हैं न जाने कहॉं ?
नगाडे की आवाज़-सी
टूट पडती है रोशनी
       00000

3 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

वाह भाई उत्तम वाह ! तुमने पता भेजा और हमने तुम्हारी कविता पढ़ ली अब फुर्सत से सारी कवितायें पढ़ता हूँ ।

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

The guy sans voice ने कहा…

क्या बात है ! अच्छी कल्पना

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