बुधवार, 1 सितंबर 2010

जब तूफ़ान आते हैं....

तुम हँसती रहो
खि‍लखि‍लाती रहो
अनाहूत प्रेम सी
मन के कि‍सी कोने में

बॉंस के सूखे पत्‍तों पर फि‍सलती
हवा की कि‍लकारि‍यों से अनभि‍ज्ञ
कि‍सी दावानल की भेंट चढने से
पहले का सूखापन छू न पाए तुम्‍हें
यही प्रार्थना का स्‍वर है तुम्‍हारे लि‍ए

क्‍योंकि‍ जब तू़फ़ान आते हैं न
तो कुछ भी नहीं बचता
.ख्‍वाब तक उड जाते हैं दूर ति‍नके की तरह

जब तूफ़ान आते हैं
तो कुछ भी नहीं बचता
.ख्‍वाब तक उड जाते हैं दूर ति‍नके की तरह
कई - कई दि‍नों तक
नींद का अता-पता नहीं मि‍लता
भूख -प्‍यास तो लगती ही नहीं
हर आदमी फरि‍श्‍ता हो जाता है
कई - कई फरि‍श्‍ते भटकते फि‍रते हैं
जो होश आने पर सहसा पूछ बैठते हैं
''तुम्‍हारी भी कोई दुनि‍या उजडी है क्‍या ‍?''


जब कि‍सी की दुनि‍या उजड. जाती है
तो सारे तू़फ़ान बेमानी हो जाते हैं
दुनि‍या की कोई भी शय कुछ नहीं
बि‍गा़ड पाती वीराने का
       ********

1 टिप्पणी:

Anoop ने कहा…

achha challenge diya hai apne toofaano ko.. aap batein bahut seedhe kahte hain...ABHIDHA...sarthak hui hai

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