बुधवार, 29 सितंबर 2010

जिओ हज़ारों साल

चि. अन्‍वय क्षीरसागर 

               जन्‍मदिवस की हार्दिक शुभकामनाऍं 

                             जिओ मेरे लाल

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

स्‍वप्‍न

बुद्धू !
चॉंद कहीं फलता है क्‍या ?
हॉं, एक आसमानी पेड़ था धरती पर
ऊपर सबसे ऊपर की शाख पर
अटका था चॉंद
और शाखों-टहनियों पर छिटके थे तारे
सच ! सबकुछ झिलमिला रहा था
पूरी धरती - पूरा आसमान

कोई चिडिया नहीं  थी क्‍या ?
बुद्धू !
चिडिया सब सो रही थीं
घोसलों के किवाड बंद थे
कहीं कोई आवाज़ नहीं
बहुत सन्‍नाटा एकदम शांत सब
चिडिया सॉंस भी ले रही थीं या नहीं
कुछ मालूम नहीं ?

दूर-दूर तक फैले इस सन्‍नाटे में
सुनाई पडती है एक पुकार
तभी टूटकर गिर जाता है चॉंद धरती पर
और गु़म होता जाता है कहीं
छिटककर तारे चले जाते हैं न जाने कहॉं ?
नगाडे की आवाज़-सी
टूट पडती है रोशनी
       00000

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

रूदन

रूदन
एक गैरमामूली हरकत है
इसका इस्‍तेमाल .जरा बेबसी
और तनहाई में ही किया करें


मॉं याद आए तो देख लें किसी भी
औरत का चेहरा
बहन याद आए तो देख लें किसी भी
औरत का चेहरा
बेटी याद आए तो देख लें किसी भी
‍औरत का  चेहरा


फिर भी न रूके रूलाई तो ची.ख-ची.खकर रोए बेधडक
दहाडे मारते देखेंगी दुनिया तो
आस-पास जमा होंगी औरतें ही
उन्‍हीं में मिल जाएगा कोई चेहरा
मॉं जैसा
बहन जैसा
बेटी जैसा
              ******

बुधवार, 1 सितंबर 2010

जब तूफ़ान आते हैं....

तुम हँसती रहो
खि‍लखि‍लाती रहो
अनाहूत प्रेम सी
मन के कि‍सी कोने में

बॉंस के सूखे पत्‍तों पर फि‍सलती
हवा की कि‍लकारि‍यों से अनभि‍ज्ञ
कि‍सी दावानल की भेंट चढने से
पहले का सूखापन छू न पाए तुम्‍हें
यही प्रार्थना का स्‍वर है तुम्‍हारे लि‍ए

क्‍योंकि‍ जब तू़फ़ान आते हैं न
तो कुछ भी नहीं बचता
.ख्‍वाब तक उड जाते हैं दूर ति‍नके की तरह

जब तूफ़ान आते हैं
तो कुछ भी नहीं बचता
.ख्‍वाब तक उड जाते हैं दूर ति‍नके की तरह
कई - कई दि‍नों तक
नींद का अता-पता नहीं मि‍लता
भूख -प्‍यास तो लगती ही नहीं
हर आदमी फरि‍श्‍ता हो जाता है
कई - कई फरि‍श्‍ते भटकते फि‍रते हैं
जो होश आने पर सहसा पूछ बैठते हैं
''तुम्‍हारी भी कोई दुनि‍या उजडी है क्‍या ‍?''


जब कि‍सी की दुनि‍या उजड. जाती है
तो सारे तू़फ़ान बेमानी हो जाते हैं
दुनि‍या की कोई भी शय कुछ नहीं
बि‍गा़ड पाती वीराने का
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